भागलपुर : महज दो घंटे में नाथनगर जल उठा। सारी दुकानें बंद हो गई। लगने लगा कि इलाके में कर्फ्यूलग गया हो।
दोजगह आगजनी, पथराव, गोलीबारी होने लगी। दुकानों के शटर तोड़ने की आवाज थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों को सुनाई देने लगी, और उपद्रवियों पूरे शहर को अशांत करते चले गए. लेकिन जो कुछ बातें हैं जो जानने के बाद काफ़ी कचोटती हैं. एक एक कर शायद ये सवाल आपके भी ज़ेहन में घर कर जाए।
सबसे पहले क्या हुआ?
केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के पुत्र और भाजपा नेता अर्जित शाश्वत चौबे (इतना लम्बा बताने की ज़रूरत नही आप सब जानते ही होंगे) के अगुवाई में भारतीय नववर्ष समिति की ओर से निकाली गई संदेश यात्रा भारी संख्या में थे मोटरसाइकल, था गाने वानेका इंतेजाम. भारतीय नववर्ष पर निकाली गई संदेश यात्रा जब मदनीनगर चौक पहुंची तो वहां यात्रा में शामिल लोग नारेबाजी करते हुए गाना-बजाना शुरू कर दिया। मामला भड़क उठा। आपत्ति जताने के बाद वे और तेज आवाज में नारेबाजी करने लगे। मामला शाम करीब 4 बजे का था। एक पक्ष के लोगों का कहना है कि मदीननगर के पास यात्रा को रोककर विवाद को आगे बढ़ाया। वहीं दूसरे पक्ष का कहना था कि यात्रा में पहले भी इस तरह का गाना-बजाना होता ही रहा है उसमें आपत्ति की बात ही नहीं होनी चाहिए। देखते-दिखते विवाद इतना बढ़ गया कि लोग राहगीरों को पीटने लगे। बाइक को आग के हवाले कर दिया।
अब बतियाते है कि गलती हुई कहाँ से?
अर्जित ने कहा यात्रा की अनुमति ली गई थी : भाजपा नेताअर्जित शाश्वत चौबे ने कहा कि भारतीय नववर्ष समिति की ओर से निकाली गई संदेश यात्रा के लिए एसडीओ से अनुमति ली गई थी।लेकिन हमलोगों ने आदेश की कॉपी नहीं लिया था।
ये सवाल तो बिल्कुल लाजमी है।
* अनुमति ली भी गयी अगर मान लेते हैं तो अर्जित ने अनुमति लेने की प्रक्रिया का प्रोटोकाल क्यूँ नही फ़ॉलो किया ?
*अर्जित ख़ुद को एक ज़िम्मेदार भाजपा नेता के तौर पर शहर को छवि दिखा रहे हैं और आदेश की कॉपी नहीं लिया था ये तर्क बहुत बचकना लगता हैं।
*अर्जित जब ख़ुद विदेश में पढ़े और काफ़ी डिग्रियाँ और अनुभव हासिल किया हैं तो फिर ये सिस्टम को तोड़ने की भूल कैसे करते हैं, या जुलूस अपने दम पर निकाल कर कुछ अलग बात अपने समर्थकों के बीच में रखना चाह रहे थे ?
अभी बाक़ी हैं: इस बात की पुस्टी IG ने ख़ुदकिया “बिना अनुमति निकाली गई थी यात्रा, दर्ज होगा केस“
आईजी जोनल आईजी सुशील खोपड़े ने ख़ुद कहा कि नववर्ष पर निकाली गई संदेश यात्रा प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई थी।अर्जित शाश्वत चौबे ने फोनकर एसएसपी को यात्रा के बारे में बताया था। एसएसपी बोले थे कि अनुमति जरूर ले लें।फिर भी अनुमति नहीं ली गई। इस मामले में कुल दो एफआईआर दर्ज किया जा रहा है। एक पथराव, गोलीबारी का और दूसरा बिना अनुमति के यात्रा निकालने की। माहौल खराब करने वाले की पहचान की जा रही है।
*तो क्या अर्जित फ़ोन पर बात कर ही प्रोटोकाल की धज्जियाँ उड़ाते हैं ?
*क्या एक ज़िम्मेदार नेता ऐसे अनुमति लेता हैं, जैसे फ़ोन पर घर की बात हो ?
*सबसे बड़ा सवाल की अर्जित ने यात्रा से पहले सारीचीज़ों को घर के डाल भात के बराबर लेकर क्यूँ क़दम बढ़ाया ?
अर्जित की गई एक और सफाई।
यदि अनुमति नहीं थी तो पुलिसवाले जुलूस के साथ-साथ कैसे घूम रहे थे। बगैर अनुमति के यात्रा निकाली गई थी तो पुलिस ने क्यों नहीं रोका। चौबे ने कहा कि इसे दूसरा रंग देने की कोशिश की जा रही है।अगर पुलिस को इसकी सूचना थी, और SSP से लेकर थाने सब मामले को जान रहे थे तो बीच में जुलूस को क्यूँ नही रोका ? उसी समय त्वरित ऐक्शन क्यूँ नहीं लिया गया. फ़ोन पर आश्वस्ति के उपरांत शहर को जलने और बदनाम होने तक का क्यूँ इंतज़ार किया गया ?#भागलपुरहिंसा पर मंत्री अश्विनी चौबे का बयान-कहा दोषियों पर हो कार्रवाई। निर्दोषों की नहीं होनी चाहिए गिरफ्तारी।भागलपुरके लोगों से की अमन और शांति की अपील।इसमें एक कार्यवाई तो अर्जित चौबे पर भी ग़ैरज़िम्मेदार नेतृत्व और प्रशासन के प्रोटोकाल को नही फ़ॉलो करने पर ज़रूर होनी चाहिए, चुकी शक्तिज़िम्मेदारी ले कर आती हैं, आऊर आज जब अर्जित चौबे के पास कार्यकर्ताओं के रूप में शक्ति हैं तो इसका ग़ैर ज़िम्मेदार नेतृत्व काफ़ी निंदनीय हैं. भागलपुर ऐसे नेताओ से किस तरीक़े का समाजिक दिशा उम्मीद कर सकती हैं ?
दोजगह आगजनी, पथराव, गोलीबारी होने लगी। दुकानों के शटर तोड़ने की आवाज थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों को सुनाई देने लगी, और उपद्रवियों पूरे शहर को अशांत करते चले गए. लेकिन जो कुछ बातें हैं जो जानने के बाद काफ़ी कचोटती हैं. एक एक कर शायद ये सवाल आपके भी ज़ेहन में घर कर जाए।
सबसे पहले क्या हुआ?
केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के पुत्र और भाजपा नेता अर्जित शाश्वत चौबे (इतना लम्बा बताने की ज़रूरत नही आप सब जानते ही होंगे) के अगुवाई में भारतीय नववर्ष समिति की ओर से निकाली गई संदेश यात्रा भारी संख्या में थे मोटरसाइकल, था गाने वानेका इंतेजाम. भारतीय नववर्ष पर निकाली गई संदेश यात्रा जब मदनीनगर चौक पहुंची तो वहां यात्रा में शामिल लोग नारेबाजी करते हुए गाना-बजाना शुरू कर दिया। मामला भड़क उठा। आपत्ति जताने के बाद वे और तेज आवाज में नारेबाजी करने लगे। मामला शाम करीब 4 बजे का था। एक पक्ष के लोगों का कहना है कि मदीननगर के पास यात्रा को रोककर विवाद को आगे बढ़ाया। वहीं दूसरे पक्ष का कहना था कि यात्रा में पहले भी इस तरह का गाना-बजाना होता ही रहा है उसमें आपत्ति की बात ही नहीं होनी चाहिए। देखते-दिखते विवाद इतना बढ़ गया कि लोग राहगीरों को पीटने लगे। बाइक को आग के हवाले कर दिया।
अब बतियाते है कि गलती हुई कहाँ से?
अर्जित ने कहा यात्रा की अनुमति ली गई थी : भाजपा नेताअर्जित शाश्वत चौबे ने कहा कि भारतीय नववर्ष समिति की ओर से निकाली गई संदेश यात्रा के लिए एसडीओ से अनुमति ली गई थी।लेकिन हमलोगों ने आदेश की कॉपी नहीं लिया था।
ये सवाल तो बिल्कुल लाजमी है।
* अनुमति ली भी गयी अगर मान लेते हैं तो अर्जित ने अनुमति लेने की प्रक्रिया का प्रोटोकाल क्यूँ नही फ़ॉलो किया ?
*अर्जित ख़ुद को एक ज़िम्मेदार भाजपा नेता के तौर पर शहर को छवि दिखा रहे हैं और आदेश की कॉपी नहीं लिया था ये तर्क बहुत बचकना लगता हैं।
*अर्जित जब ख़ुद विदेश में पढ़े और काफ़ी डिग्रियाँ और अनुभव हासिल किया हैं तो फिर ये सिस्टम को तोड़ने की भूल कैसे करते हैं, या जुलूस अपने दम पर निकाल कर कुछ अलग बात अपने समर्थकों के बीच में रखना चाह रहे थे ?
अभी बाक़ी हैं: इस बात की पुस्टी IG ने ख़ुदकिया “बिना अनुमति निकाली गई थी यात्रा, दर्ज होगा केस“
आईजी जोनल आईजी सुशील खोपड़े ने ख़ुद कहा कि नववर्ष पर निकाली गई संदेश यात्रा प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई थी।अर्जित शाश्वत चौबे ने फोनकर एसएसपी को यात्रा के बारे में बताया था। एसएसपी बोले थे कि अनुमति जरूर ले लें।फिर भी अनुमति नहीं ली गई। इस मामले में कुल दो एफआईआर दर्ज किया जा रहा है। एक पथराव, गोलीबारी का और दूसरा बिना अनुमति के यात्रा निकालने की। माहौल खराब करने वाले की पहचान की जा रही है।
*तो क्या अर्जित फ़ोन पर बात कर ही प्रोटोकाल की धज्जियाँ उड़ाते हैं ?
*क्या एक ज़िम्मेदार नेता ऐसे अनुमति लेता हैं, जैसे फ़ोन पर घर की बात हो ?
*सबसे बड़ा सवाल की अर्जित ने यात्रा से पहले सारीचीज़ों को घर के डाल भात के बराबर लेकर क्यूँ क़दम बढ़ाया ?
अर्जित की गई एक और सफाई।
यदि अनुमति नहीं थी तो पुलिसवाले जुलूस के साथ-साथ कैसे घूम रहे थे। बगैर अनुमति के यात्रा निकाली गई थी तो पुलिस ने क्यों नहीं रोका। चौबे ने कहा कि इसे दूसरा रंग देने की कोशिश की जा रही है।अगर पुलिस को इसकी सूचना थी, और SSP से लेकर थाने सब मामले को जान रहे थे तो बीच में जुलूस को क्यूँ नही रोका ? उसी समय त्वरित ऐक्शन क्यूँ नहीं लिया गया. फ़ोन पर आश्वस्ति के उपरांत शहर को जलने और बदनाम होने तक का क्यूँ इंतज़ार किया गया ?#भागलपुरहिंसा पर मंत्री अश्विनी चौबे का बयान-कहा दोषियों पर हो कार्रवाई। निर्दोषों की नहीं होनी चाहिए गिरफ्तारी।भागलपुरके लोगों से की अमन और शांति की अपील।इसमें एक कार्यवाई तो अर्जित चौबे पर भी ग़ैरज़िम्मेदार नेतृत्व और प्रशासन के प्रोटोकाल को नही फ़ॉलो करने पर ज़रूर होनी चाहिए, चुकी शक्तिज़िम्मेदारी ले कर आती हैं, आऊर आज जब अर्जित चौबे के पास कार्यकर्ताओं के रूप में शक्ति हैं तो इसका ग़ैर ज़िम्मेदार नेतृत्व काफ़ी निंदनीय हैं. भागलपुर ऐसे नेताओ से किस तरीक़े का समाजिक दिशा उम्मीद कर सकती हैं ?
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